रविवार, 12 दिसंबर 2010

लोकतंत्र के लिए मीडिया का नियमन जरुरी: मनोज



 मीडिया की आचार- संहिता पर गोष्ठी संपन्न  

           भोपाल, 12 दिसंबर: वर्तमान युग में भारत का मीडिया विश्वसनीयता के घोर संकट से गुजर रहा है। ऐसा होना लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर भी संकट है। मीडिया का पतन जनतंत्र के विरूद्ध अपराध है। ऐसे में जरूरी है मीडिया के लिए आचार संहिता। उक्त विचार है भोपाल संभागायुक्त मनोज श्रीवास्तव के। वह इंडियन मीडिया सेंटर के मध्यप्रदेश चैप्टर द्वारा आयोजित मीडिया के लिए आचार सहिता: आवश्यकता एवं स्वरूप विषय पर आयोजित वक्ता बोल रहे थे। माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि में आयोजित इस गोष्ठी मे श्री श्रीवास्तव ने कहा कि मीडिया अगर विधि निर्मित नहीं चाहती तो स्वयं संहिता निर्माण की पहल करें।

           उन्होंने कहा कि आज पत्रकार संकट में फंसे व्यक्ति को बचाने के बजाय उसकी तस्वीर खीचने में लग जाता है। बिना मतलब सूचना के अधिकार का दुरूपयोग करने लगता है। विकिलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे की प्रशंसा करते हुए संभागायुक्त ने कहा कि उन्होंने बिना किसी आरटीआई के जो कर दिखाया है। वर्तमान मीडिया का वैसा ही लक्ष्य होना चाहिए। मीडिया की साख पर लग रहे बट्टे का एक मात्र समाधान है उसके लिए आचार संहिता का निर्माण। यह संहिता चाहे कानून के तहत हो अथवा पत्रकारों द्वारा निर्मित पर लोकतंत्र की विश्वसनीयता इसी में सुरक्षित है।
        
           कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मानवाधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति आरडी शुक्ला ने भी आचार संहिता का समर्थन करते हुए कहा कि संविधान के जिस अनुच्छेद 19 के नाम पर पत्रकारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली है, आज उसका दुरूपयोग हो रहा है। इस अधिकार की शर्तो पर अधिकतर मीडिया हाउस ध्यान नहीं देते और लोकतंत्र और भारतीय संस्कृति पर खतरा बने हुए है। इससे राष्ट्रीय सुरक्षा भी खतरें में पड़ जाती है। न्यायमूर्ति शुक्ला ने मीडिया के लिए आचार संहिता को कानून द्वारा बनाए जाने को बात का समर्थन किया और कहा कि इसे मानना मीडियाकर्मियों की बाध्ययता होनी चाहिए। वोट और बहुमत के आधार पर न्याय नहीं हो सकता। उन्होंने अरूंधती राय व गिलानी की तरफ इशारा करते हुए कहा कि संहिता बनने से राष्ट्र के लिए घातक भाषणों भी रोक लग सकेगी।


           गोष्ठी में इंडियन मीडिया सेंटर के एम.पी. चैप्टर के अध्यक्ष रमेश शर्मा ने अपने विचार रखते हुए कहा कि पत्रकारिता जुनून होना चाहिए। आज के दौर में अल्य व्यवसायों की तरफ कई छात्र मीडिया की पढ़ाई कर बिना रूचि के पत्रकार बन रहे है, इससे पत्रकारिता में बुराईयां बढ़ रही है। श्री शर्मा ने मीडिया के मालिकों व पत्रकारों दोनों के लिए आचार संहिता की वकालत की। इस अवसर पर पत्रकारिता विवि के कुलपति प्रो. बी.के. कुठियाला प्रकाशन निदेशक राघवेंद्र सिंह सहित उपस्थित पत्रकारों व पत्रकारिता के छात्रों ने भी अपने विचार रखे। छात्रों की जिज्ञासाओं का समाधान गोष्ठी में उपस्थित विद्वानों ने किया। संचालन अनिल सौमित्र ने किया।

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

मीडिया की आचार संहिता बनाएगा पत्रकारिता विश्वविद्यालय

माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल की महापरिषद की बैठक में कई महत्वपूर्ण फैसले


                भोपाल, 1 नवंबर, 2010: माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल की पिछले दिनों सम्पन्न महापरिषद की बैठक में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। महापरिषद के अध्यक्ष और प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में हुयी इस बैठक का सबसे बड़ा फैसला है मीडिया के लिए एक आचार संहिता बनाने का। इसके तहत विश्वविद्यालय मीडिया और जनसंचार क्षेत्र के विशेषज्ञों के सहयोग से तीन माह में एक आचार संहिता का निर्माण करेगा और उसे मीडिया जगत के लिए प्रस्तुत करेगा। पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.बीके कुठियाला के कार्यकाल की यह पहली बैठक है, जिसमें विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय स्वरूप देने के लिए महापरिषद ने अपनी सहमति दी और कहा है कि इसे मीडिया, आईटी और शोध के राष्ट्रीय केंद्र के रूप में विकसित किया जाए।

 नए विभाग- नई नियुक्तियां
            विश्वविद्यालय में शोध और अनुसंधान के कार्यों को बढ़ावा देने के लिए संचार शोध विभाग की स्थापना की गयी है। जिसके लिए प्रोफेसर देवेश किशोर की संचार शोध विभाग में दो वर्ष के लिये प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति का फैसला लिया गया है। इस विभाग में मौलिक शोध व व्यवहारिक शोध के कई प्रोजेक्ट डॉ. देवेश के मार्गदर्शन में चलेंगें। प्रोफेसर (डॉ.) नंदकिशोर त्रिखा की दो वर्ष के लिये सीनियर प्रोफेसर पद पर नियुक्ति की गयी है। अगले दो वर्ष में डॉ. त्रिखा के मार्गदर्शन में मीडिया की पाठ्यपुस्तकें हिन्दी व अंग्रेजी में लिखी जाएंगी। इस काम को अंजाम देने के लिए विश्वविद्यालय में अलग से पुस्तक लेखन विभाग की स्थापना होगी। इसी तरह विश्वविद्यालय में प्रकाशन विभाग की स्थापना की गयी है। जिसमें प्रभारी के रूप में वरिष्ठ पत्रकार एवं पीपुल्स समाचार के पूर्व स्थानीय संपादक राधवेंद्र सिंह की नियुक्ति की गयी है, विभाग में सौरभ मालवीय को प्रकाशन अधिकारी बनाया गया है। अल्पकालीन प्रशिक्षण विभाग की स्थापना की गयी है, जिसके तहत श्री रामजी त्रिपाठी, केन्द्रीय सूचना सेवा (सेवानिवृत्त), पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक, प्रसार भारती (दूरदर्शन) की दो वर्ष के लिये प्रोफेसर के पद पर अल्पकालीन प्रशिक्षण विभाग में नियुक्ति की गयी है। श्री त्रिपाठी जिला और निचले स्तर के मीडिया कर्मियों के लिये प्रशासन में कार्यरत मीडिया कर्मियों के लिये व वरिष्ठ मीडिया कर्मियों के लिये प्रशिक्षण व कार्यशालाओं का आयोजन करेंगे। इसी तरह श्री आशीष जोशी, मुख्य विशेष संवाददाता, आजतक की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग में प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति की गयी है। श्री आशीष जोशी, भोपाल परिसर में टेलीविजन प्रसारण विभाग में कार्यरत रहेंगे।

टास्क कर्मचारियों को दीपावली का तोहफा- विश्वविद्यालय में कार्यरत दैनिक वेतन पाने वाले लगभग 85 कर्मचारियों के वेतन में 25 प्रतिशत वृद्धि करने का फैसला किया गया है। इसी तरह शिक्षकों के लिए ग्रीष्मकालीन व शीतकालीन अवकाश की व्यवस्था भी एक बड़ा फैसला है। अब तक विश्वविद्यालय में जाड़े और गर्मी की छुट्टी (अन्य विश्वविद्यालयों की तरह) नहीं होती थी। आपात स्थिति के लिये 10 करोड़ रूपये का कार्पस फंड बनाया गया है , जिसमें हर वर्ष वृद्धि होगी। शिक्षक कल्याण कोष की स्थापना भी की गयी है। इसके अलावा चार प्रोफेसर, आठ रीडर व आठ लेक्चरार (कुल 20) अतिरिक्त शैक्षणिक पदों का अनुमोदन किया गया है, जिसपर विश्वविद्यालय नियमानुसार नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करेगा।

बनेगा स्मार्ट परिसर
           विश्वविद्यालय के लिये भोपाल में 50 एकड़ भूमि पर ‘‘ग्रीन’’ व ‘‘स्मार्ट’’ परिसर बनाने के कार्यक्रम की शुरूआत की जाएगी। जिसके लिए भवन निर्माण शाखा की स्थापना भी की गयी है।

             आगामी दो वर्षों में टेलीविजन कार्यक्रम निर्माण, नवीन मीडिया, पर्यावरण संवाद, स्पेशल इफैक्ट्स व एनीमेशन में श्रेष्ठ सुविधाओं का निर्माण के लिए यह परिसर एक बड़े केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा। इसके साथ ही आगामी पांच वर्षों में आध्यात्मिक संचार, गेमिंग, स्पेशल इफैक्ट्स, एनीमेशन व प्रकृति से संवाद के क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाने की तैयारी है।इस बैठक में प्रबंध समिति के कार्यों व अधिकारों का स्पष्ट निर्धारण भी किया गया है। बैठक में महापरिषद के अध्यक्ष मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, जनसंपर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, कुलपति प्रो. बीके कुठियाला, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर के कुलपति प्रो. रामराजेश मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार राधेश्याम शर्मा (चंडीगढ़), साधना(गुजराती) के संपादक मुकेश शाह, विवेक (मराठी) के संपादक किरण शेलार, सन्मार्ग- भुवनेश्वर के संपादक गौरांग अग्रवाल, स्वदेश समाचार पत्र समूह के संपादक राजेंद्र शर्मा, काशी विद्यापीठ के प्रोफेसर राममोहन पाठक, दैनिक जागरण भोपाल के संपादक राजीवमोहन गुप्त, जनसंपर्क आयुक्त राकेश श्रीवास्तव, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के सलाहकार अशोक चतुर्वेदी, विश्वविद्यालयय के रेक्टर प्रो.चैतन्य पुरूषोत्तम अग्रवाल, नोयडा परिसर में प्रो. डा. बीर सिंह निगम शामिल थे। 

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

विद्या से आएगी समृद्धि: प्रो. कुठियाला

विद्यार्थियों ने मनाया दीपावली मिलन समारोह


          भोपाल, २९ अक्तूबर: लक्ष्मी और सरस्वती आपस में बहनें ही हैं। यदि विद्या है तो धन और समृद्धि अपने आप ही प्राप्त हो जाएंगी। पत्रकारिता में सरस्वती की अराधना से ही लक्ष्मी भी प्रसन्न होंगी। दीपावली का पर्व मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आगमन को याद करने के साथ उनके आदर्शों को जीवन में अपनाने का संकल्प लेने का अवसर है। उक्त बातें माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रों बृजकिशोर कुठियाला ने विवि के जनसंचार विभाग द्वारा आयोजित दीपावली मिलन सामारोह में कही।

        प्रों. कुठियाला ने विश्वविद्यालय प्रशासन तथा स्वयं की ओर से विद्यार्थियों को दीपावली की शुभकामनाएँ देते हुए अपील की कि विद्यार्थी कोर्स समाप्त होने के बाद जब पत्रकारिता करें तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को ध्यान में रखकर करें ताकि दीपावली की प्रासंगिकता युगों-युगों तक कायम रहे। वर्तमान में मीडिया जगत में पाँव पसार रहे सुपारी पत्रकारिता व पेड-न्युज संस्कृति से पत्रकारिता को मुक्त करने की आवश्यकता है। उन्होंने हनुमान जी को विश्व का पहला खोजी पत्रकार बताया। जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने विद्यार्थियों को दीपावली की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि पूरा विश्व आज भारत की ओर आशा भरी नजरों से देख रहा है। हमें उनकी आशाओं पर खरा उतरने के लिए रामराज्य को धरती पर उतारने की आवश्यता है। इसके लिए भारत में सुख, समृद्धि, एकता और अखंडता का वातावरण बनाना होगा। तभी, दीपावली का पर्व भी सार्थक होगा। शिक्षिका मोनिका वर्मा ने विद्यार्थियों को घर जाकर आनंद से दीपावली मनाने की शुभकामनाएँ दी और कहा कि जब वापस आएँ तो पूरी लगन से पढ़ाई करें ताकि सारा जीवन दीपावली की खुशियाँ मनाएँ।

                   समारोह में दीपावली की पौराणिक कथाओं के बारे में बताते हुए छात्र देवाशीष मिश्रा ने बताया कि यह बुराइयों पर अच्छाइयों की जीत की खुशी मनाने का पर्व है। छात्रा श्रेया मोहन ने दीपावली के बाद बिहार-झारखण्ड में विशेष रूप सें मनाए जाने वाल छठ-पर्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने गीत-गायन व कविता पाठ भी किया। शाहीन बानो ने एक हास्य कविता का पाठ कर सबका मन मोह लिया वहीं संजय ने राजस्थानी लोकगीत पधारो म्हारो देश गाकर सबको राजस्थान आने का निमंत्रण दिया । छात्रा मीमांसा ने एक सुंदर कृष्ण-भजन का गायन किया। कार्यक्रम का संचालन अंशुतोष शर्मा व शिल्पा मेश्राम ने किया। इस अवसर पर विभाग के शिक्षक संदीप भट्ट, शलभ श्रीवास्तव, कर्मचारीगण तथा समस्त छात्र-छात्राएँ उपस्थित थे।

सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

अमेरिका की कृपा मंहगी पड़ेगी

अफगानिस्तान- इराक की राह पर पाकिस्तान


संयुक्त राज्य अमेरिका के एक शीर्ष सैन्य अधिकारी के अनुसार, अगर पाकिस्तान ने आतंकी ठिकाने नष्ट नहीं किए तो अमेरिकी सेना पाकिस्तान की ही सेना की मदद लेकर उन ठिकानों पर हमला कर देगी। अब तक तो सिर्फ हवाई हमले हो रहे हैं, जमीनी लड़ाई भी शुरू की जा सकती है। किसी एशियाई देश को इतनी धमकी दे देना अमेरिका के लिए कोई नई बात नहीं है, लेकिन इसे हल्के में लेना पाक की भूल होगी। इसके खिलाफ कोई तर्क देने से पहले हमें ईराक और अफगानिस्तान की मौजूदा हालत की ओर एक बार देख लेना चाहिए।


इस मामले में पाक विदेश मंत्री रहमान मलिक का पिछले दिनों दिया गया बयान उल्लेखनीय है। रहमान ने कहा था- “नाटो बलों की हमारे भूभाग में हवाई हमले जैसी कार्रवाई संयुक्त राष्ट्र की उन दिशानिर्देशों का स्पष्ट उलंघन है जिनके तहत अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल काम करता है।” पूरी दुनिया जानती है कि अमेरिका अंतरराष्ट्रीय नियमों को कितना मानता है। ये अलग बात है कि उसने प्रोटोकॉल को मानने का वादा भी कर दिया है अमेरिका ने, इस शर्त के साथ कि सेना को आत्मरक्षा का अधिकार है।


दोनों तरफ की बयानबाजी को देखकर एक बात साफ हो जाती है कि ईराक और अफगानिस्तान के बाद अब अमेरिका की हिटलिस्ट में पाकिस्तान का नंबर है। तेल के पीछे पागल अमेरिका ने सद्दाम हुसैन के बहाने ईराक पर हमले किए। उसी तरह 9/11 के हमलों नें उसे अफगानिस्तान पर हमले के लिए तर्क तैयार किए और अब आर्थिक मदद दे देकर पाक को इतना कमजोर और परनिर्भर बना दिया है कि आज वह कोई फैसला खुद से लेने के काबिल नहीं रहा। जहाँ तक बात आतंकवाद के खात्मे की है तो यूएस ने ही लादेन और सद्दाम को पाला था जो आस्तीन के साँप की तरह उसी पर झपटे थे। इसके बाद पाकिस्तान में पल रहे आतंकियों को भी अप्रत्यक्ष रूप से उसने सह ही दी। शायद, इसके पीछे उसकी मंशा भारत और पाक के बीच शक्ति-संतुलन की थी ताकि अपना उल्लू सीधा किया जा सके। समय- समय पर उसने खुले हथियार भी मुहैया कराए। अमेरिकी जैसे धुर्त देश से भोलेपन की आशा की करना बेवकूफी है। उससे प्राप्त हो रही हर प्रकार की सहायता का मनमाना दुरुपयोग पाकिस्तान भारत के खिलाफ करता रहा और आतंकिवादियों की नर्सरी की अपनी भूमिका पर कायम रहा। यह उसकी दूरदर्शिता की कमी उसे इस मोड़ पर ले आई है कि उसके पड़ोसी देश भी उसके साथ नहीं हैं और अमेरिका की धमकियों के आगे उसे नतमस्तक होना पड़ रहा। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी जब अमेरिका सच में वहाँ जमीनी लड़ाई पर उतर आएगा और वहाँ की आम जनता भी पाक सरकार के साथ खड़ी नहीं होगी। अपने निर्माण के समय से ही वहाँ की जनता अराजकता झेलती आ रही है। कुल मिलाकर एक और इस्लामिक देश एक खतरे में फँसता जा रहा है जहाँ न वो विरोध कर सकेगा और न ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सहानुभूति ही हासिल कर पाएगा। विश्व में इसकी छवि एक आतंकी देश के रूप में बहुत पहले ही बन चुकी है।




(यह लेख न्यूजनाइन डॉट इन पर भी प्रकाशित हुआ था। नीचे दिए गए  लिंक पर जाकर देखा जा सकता है।)



http://www.newsnine.in/NewsDescription.aspx?id=85


बुधवार, 29 सितंबर 2010

हो-हल्ला से हल नहीं

अयोध्या के फैसले की कोई भी प्रतिक्रिया ठीक नहीं


अभी से करीब 24 घंटे के अंदर यानि कल 3.30 बजे ईलाहाबाद उच्च-न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ एक ऐतिबहासिक फैसला सुनाने जा रही है। फैसले में अदालत यह तय करेगी कि रामजन्भूमि-बाबरीमस्जिद पर मलिकाना हक किसका है, हिंदुओं का या मुसलमानों का? क्या वहाँ मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी? क्या मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाना शरिया के खिलाफ है? इन प्रमुख सवालों के अतिरिक्त कई ऐसे सवाल हैं जिसका जवाब कोर्ट के फैसले में तय होना है। इन सवालों से बेशक हिन्दुस्तान का हर शख्स इत्तेफाक रखता है चाहे वह हिंदु हो, मुसलमान हो, ईसाई हो या कोई अन्य पूजा पद्धति को मानता हो। जाहिर है, फैसले का इंतजार भी बेसब्री से होगा। इसलिए, आम जन से यह आशा करना कि वह फैसले से मोह छोड़ दे, काल्पनिक है।





सुरक्षा-व्यवस्था चाक-चैबंद हो, अफवाह फैलाने वालों से कड़ाई से निपटा जाए, विस्फोटक खबरों को दबा दिया जाए। ऐसी कुछ सावधानियाँ काम आ सकती हैं, लेकिन सबसे जरूरी बात है कि लोगों के मन में हिंसा के प्रति घृणा और मानव मात्र से प्रेम की भावना विकसित हो जो हमेशा के लिए हर इस तरह की चिंता से मुक्त कर दे जिसके भय से सरकार को इतनी चुस्ती दिखानी पड़ रही है। हो सकता है कि फैसले एक नहीं कई हों, जैसा कि गृहमंत्री आशंका जता चुके हैं। जो भी हो, फैसला तो कोर्ट के हाथों में है और हमारा काम खुशी-खुशी उसका स्वागत करना है। इससे न्यायालय की मर्यादा भी बनी रहेगी और शांति भी। असंतोष की स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा तो सबके लिए खुला है।



अब जरा बात कट्टरपंथियों के कारनामों की, तो इतिहास गवाह है कि सांप्रदायिक हिंसा का अंतिम परिणाम दोनों ही पक्षों के लिए दुखदायी ही रहा है। यह बात स्थापित होनी जरूरी है कि यह कोई युद्ध नहीं जिसमें शहीद होना वीरगति को प्राप्त होना है और विजय पाना धर्म का काम है। क्योंकि, इसमें दोनो तरफ लड़ने वाले भगवान के नाम पर लड़ते हैं और खून के प्यासे कुछ भी गलत करने पर उतारू होते हैं। स्लाम के आक्रमण के समय देश की स्थितियाँ कुछ और थीं। मंदिर तोड़कर मस्जिद बनना या मस्जिद के समान ढाँचे को तोड़ देना इतिहास की भूलें हो सकती हैं। इक्कसवीं सदी में भी इन सब बातों को लेकर बैठे रहना और भविष्य को अंधकार में ढकेलना भारी भूल होगी। अब तो अर्थ का युग है। चीन जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को टक्कर देना है। अमेरिका के वर्चस्ववादी राजनीति में स्वयं को मजबूती से खड़ा करना है। कोर्ट के फैसले को अपनी आन से जोड़ना जायज नहीं। इससे अंतत: देश का ही नुकसान होगा।





हिंदुओं से अपील है कि बुद्ध- महावीर के इस देश में उनके सिंद्धंतों को तार-तार न होने दें और शांति, अहिंसा को कायम रखें। मुसलमान भाइयों से गुजारिश है कि अब दारुल-इस्लाम और दारुल हर्ब की बात न कर शांतिपूर्वक कोर्ठ का सम्मान करें। सुप्रीम कोर्ट का रास्ता तो सबके लिए खुला ही है। एक बात राहत देने वाली है कि इस बार सभी धर्मों के संतो महात्माओं, गुरुओं , मौलवियों ने शांति की अपील की है तथा भरुपूर साथ देने का वादा किया है। प्रशासन भी काफी चुस्त दुरुस्त है। मैं फिर से भगवान से और आप सब से शांति की कामना करता हूँ।

शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

ये कैसे न्यायाधीश

न्यायाधीश शब्द का अर्थ ही होता है- न्याय का देवता, मालिक। इस घोर कलयुग में हालत ये है कि ये देवता भी.........................। कल ख़बर मिली कि एक पूर्व कानून मंत्री ने खुलासा किया है कि अब तक देश में सोलह मुख्य न्यायाधीशों में आठ भ्रष्ट रहे हैं। ये कोई खबर नहीं है। पहले भी एक मुख्य न्यायाधीश ये कह चुके हैं कि करीब 30 फीसदी जजों के लैपटाप में हर मामले के दो-दो फैसले पाए गए। जिधर से रिश्वत की पेशकश हो जाती, उसी के पक्ष में फैसला सुना दिया जाता। न्यायपालिका का ये हाल। लानत है।

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

राहत भरा कदम


प्रदेश के किसानो के लिए यह खबर राहत देने वाली है की बाकि के जिलों को भी सूखा प्रभावित घोषित किया गया है. राज्यपाल के सलाहकारों की सिफारिश का प्रयास रंग लाया है. इसके लिए महामहिम राज्यपाल साधुवाद के पत्र हैं. तीन सालों से प्रदेश की जनता सूखे की मर झेल रही थी और शासन की लापरवाही का आलम यह था कि फसल बीमा के पैसा  भी सभी किसानो तक नहीं पहुँच पाया है. महामहिम से आशा है कि इस मुद्दे पर भी कुछ कड़े कदम उठए जाएँगे. झारखण्ड किसानो का दर्द यह है कि जब उपज होती है तो उन्हें सस्ते में बेचना पड़ता है और सूखे के समय दुगने दम पर अनाज मिलता है.उसमे भी पैसे कि दिक्कत अलग. 

इस प्रान्त कि कृषि कि सबसे बड़ी समस्या है सिंची कि व्यवस्था का घोर अभाव. झारखण्ड कि कृषि भूमि पर अगर यह व्यवस्था सुलभ हो जाये तो प्रदेश में न सूखे कबूरअ असर पड़ेगा और न ही किसानो को अन्य प्रान्तों में जाकर मजदूरी करनी पड़ेगी. राज्यपाल इस बारे में भी विचार करें. वहां कि राजनैतिक स्थिति पर बात करना गल बजने जैसा ही है इसलिए कुछ नहीं कहूँगा.

गुरुवार, 13 मई 2010

नए मुख्य न्यायाधीश




न्यायमूर्ति जे. एस. कपाड़िया देश के 38वें मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए
गये हैं। चौथे दर्जे की नौकरी से कैरियर की शुरुआत करनेवाले जस्टिस
कपाड़िया नें जीवन के कई पड़ाव देखे हैं। सनातन और बौद्ध धर्म का आपको
गहरा ज्ञान है।
इन्होनें ऐसे समय में पदभार ग्रहण किया है जब हमारी न्याय-प्रणाली कई
मोर्चों पर एक साथ जूझ रही है। जस्टिस दिनारन का मामला अभी सुलझा नहीं
है। वर्तमान में कई न्यायाधीशों पर आय से अधिक संपति के आरोप लगने भी
शुरु हो गए हैं। अपने वास्तविक उद्देश्य से भटकाव के वातावरण में हम
नवनियुक्त मुख्य न्यायाधीश से आशा करते हैं कि परिदृश्य में सकारात्मक
बदलाव होंगे। उनके संघर्षपूर्ण जीवन के अनुभव और ज्ञान का लाभ जनता को
मिलेगा।

रविवार, 9 मई 2010

लिखना शुरू करें

कौन कहता है कि आसमाँ में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो। हममें से ज्यादातर लोग लिखना तो चाहते हैं पर लिखते नहीं। हम सिर्फ इस डर से लिखना शुरू नहीं करते कि शायद अच्छा नहीं लिख सकेंगे। मजे की बात ये है कि हम साथ ही साथ ये सपना भी देख रहे होते हैं कि भविष्य में अच्छा लिखेंगे। बिना अभ्यास के ही हमें एक चमत्कार का इंतज़ार होता है कि हमारा पहला लेख ही सबसे बेहतर लेख होगा। परन्तु सच तो ये है कि जब कोई लिखेगा ही नहीं तो उसकी लेखन-कला में क्या खाक निखार होगा। क्या कोई जन्मजात लेखक होता है या कोई जादू की छड़ी है जो हमें एक ही बार में लिखना सिखा दे। बिना अभ्यास के कुछ नहीं सुधरता। फिर तो लिखना भी एक कला है, इसे सीखा भी निरंतर अभ्यास से ही जा सकता है। इसमें सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।
प्रख्यात चित्रकार और मूर्तिकार देवीलाल पाटीदार का मानना है कि ज्यादातर लोग इस मुगालते में जीते हैं कि आज की शाम वो ऐसी कविता, कहानी या निबंध लिखेंगे कि दुनिया अचंभित हो जाएगी। ऐसे लोग कला को एक ही तैयारी में किसी विशेष आयोजन की तरह समझते हैं और दुविधा में कुछ शुरु नहीं करते, टालते चले जाते हैं। बकौल पाटीदार यह प्रवृति ठीक वैसे ही है जैसे कोई व्यक्ति ये सोचकर बच्चे पैदा करे कि होने वाली बच्ची विश्व-सुंदरी होगी। वास्तविकता यह है कि कई प्रतिभागियों में से एक को विश्व- सुंदरी का खिताब मिलता है, इसी तरह हजारों- लाखों रचनाओं में कोई पुरस्कृत हो जाता है। सर्वश्रेष्ठ का सपना देखते हुए अकर्मण्य बने रहना कहाँ की बुद्धिमानी है।
हमें प्रकृति के इस नियम को समझना होगा कि सर्वश्रेष्ठ एक ही होता है पर बाकी सभी ख़राब नहीं होते। हमारे सोचने मात्र से कुछ अच्छा या बुरा नहीं हो जाता। हम मुगालते में जीकर पछतावा के अलावा कुछ हासिल नहीं करते। इसलिए हमें लिखने का काम लगातर करते रहना चाहिए। परिश्रम के अलावा कोई रास्ता नहीं। बिना अभ्यास के हम अच्छा नहीं लिख सकते। हम याद करें अपने बचपन को जब एक-एक चीज़ को काफी जद्दोजहद के बाद हम सीख पाते हैं। चलना, उठना, खाना, पीना सब के लिए लगातार उर्जा लगानी पड़ती है। वर्ण एवं मात्राएं सीखने के लिए कितना प्रयास करना पड़ता है, किसी से छिपा नहीं है।
हमारे मन-मष्तिष्क में नए-नए विचार आते रहते हैं। प्राय: हम इन्हें व्यक्त नहीं कर पाते। कई बातें हमारे मन को झकझोरती रहती हैं पर उसे मुँह से बोलकर बताना अच्छा नहीं जान पड़ता। स्थिति कई बार तो अवसाद का रूप ले लेती है। इसलिए न कही जाने लायक बातों का बोझ मन से निकालने का जरिया भी है कलम और काग़ज़। लिखी हुई बातें ज्यादा टिकाऊ और प्रभावी होती हैं। विशेषज्ञों का यह मानना है कि लिखने से मानसिक दबाव भी कम होता है। लिखी बातें भविष्य के लिए सुरक्षित भी रखी जा सकती हैं।
लिखने की कला का महत्व और भी बढ़ जाता है जब हम पत्रकारिता से जुड़े हों। लिखने के बदौलत ही तो पत्रकारों की रोटी का जुगाड़ होता है। अगर हमनें समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया तो पछतावे की कोई बात नहीं। जब जागो तभी सबेरा। मगर हाँ हम अगर अब भी नहीं चेते तो आगे का समय मश्किल भऱा हो सकता है। हो सकता है शुरुआत में बेहतर न लिख पाएँ पर निरंतर अभ्यास से सब ठीक हो जाएगा। किसी ने ठीक ही कहा हैः
करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत-जात ते सिल पर परत निशान।।

बदल डालो

29 अप्रैल 1999 को देर रात एक पार्टी में शराब परोस रही मॉडल को गोली मार दी गई। हफ्ते भर के अंदर मुख्य आरोपी ने समर्पण कर दिया। अन्य अभियुक्त भी गिरफ्तार कर लिए गए। मामले में कई उतार-चढ़ाव आए, कई गवाह मुकरते चले गए और 21 फरवरी 2008 यानि करीब 9 साल बाद आरोपी मनु शर्मा को साक्ष्य के अभाव में रिहा कर दिया गया। गत 19 अप्रैल को अंतिम रूप से उसकी सजा को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है।
जेसिका की जान गई। परिवार वालों को जो तकलीफ हुई उसकी कीमत क्या मनु शर्मा की उम्रकैद से चुकता हो सकती है? मैं मानता हूँ, सजा तभी सार्थक है जब वह आने वाले समय में अपराध की मानसिकता रखने वाले को डरा सके। लेकिन इस लेटलतीफ फैसले से ऐसा कुछ होने वाला नहीं। ऐसे तो अपराध और सजा का खेल चलता रहेगा। कानून सिर्फ सजा देने की व्यवस्था करेगा, अपराध रोकने की कोई पहल नहीं होगी। ये तो हाईप्रोफाइल मामला था इसलिए मीडिया तक सक्रिय हुई और अंतत: न्याय दिलाने में सफल रही। देश में हजारों बहुओं की हर साल दहेज के लिए हत्या कर दी जाती है, सबको न्याय मिल पाता है क्या? बलात्कार के बाद हत्या की खबरें भी आम है। कितनों को अब तक फाँसी या उम्रकैद हुई है?
बात चाहे नारी अपराध की हो या लूट खसोट या घोटालों की, हर मामले में जितनी लेटलतीफी हमारे देश की न्यायिक प्रक्रिया में होती है उससे अपराधियों का मनोबल तो कहीं से नहीं घटता। कई बार तो यही अपराध आदमी को उपर उठाने में मदद करते हैं। हमारी संसद और विधानसभाओं में दागी जनप्रतिनिधियों की जो संख्या है वो यही तो बयान करती है। पार्टियाँ भी टिकटों का बँटवारा करते समय उसी को खड़ा करने में अपनी भलाई समझती हैं जिसकी छवि दादा टाइप हो, दो-चार मुकदमें चल रहे हों या और भी बहुत कुछ। पिछले दिनों राज्य-सभा के सांसदों पर आरोपों की खबरें आने लगीं। जब देश के कर्णधार ही ऐसे होंगे उस देश की कानून-व्यवस्था का तो भगवान ही मालिक है। जेसिका लाल, शिवानी भटनागर, प्रियदर्शिनी भट्ट तो अपवाद मात्र हैं। देश मे हजारों जेसिकाओं मीडिया नहीं पहुँच पाती और न्याय तो मुश्किल से।
विश्व के सबसे लोकतंत्र की यह हालत भविष्य में गर्त की ओर ले जाने वाली है। कई देशों के संविधान का पुट लेकर हमनें किया क्या जब एक-एक फैसले में इतने दिन लग जाते हैं। आरोपी अगर रसूखदार परिवार का हो तो सजा दिलाना टेढ़ी खीर। दिनों दिन अपराध बढ़ रहे हैं, इस पर लगाम लगाने का काम आम आदमी तो कर नहीं सकता। प्रशासन अपने काम में इतनी मजबूर क्यों दिखती है? जिस पुलीस-व्यवस्था को अंग्रेजों ने भारत के शोषण के लिए स्थापित किया था उसी की फोटो-कॉपी से आजाद भारत में काम चल रहा है। जनता तो त्रस्त होगी ही। वही शोषक न्याय व्यवस्था अब तक चल रही है तो आजाद देश का क्या मतलब? न्याय सिर्फ बड़े और ताकतवर लोगों की जागीर बनकर रह गई है। बापू, अंबेडकर के सपनों का भारत क्या यही है? सवाल तो कई हैं पर जवाब भी आने शुरू हो गए हैं। जब स्थिति बद से बदतर हो जाए तो आमूल-चूल परिवर्तन की जरुरत होती है। एक फैसले से खुश ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है।
आजादी के समय स्थिति कुछ और थी आज दुनिया काफी बदल चुकी है। अब तक के समय को संविधान के एक्सपेरिमेंट का वक्त मानकर समग्र बदलाव के लिए सोचने का वक्त आ गया है। देश में विचारकों की कमी नहीं है। यहाँ से निकलकर लोग विश्व में झंडा गाड़ रहे हैं। अपने देश में उन्हें माहौल नहीं मिलता। प्रतिभा का सम्मान यहाँ नहीं होता तो उपयोग भी तो वहीं होगा जहाँ उसको इज्जत मिलेगी। फिर हमारे ही लोग दूसरों के काम नहीं आएंगे तो और क्या होगा? कुल मिलाकर इस रक्तहीन-क्रांति के लिए हर खास ओ आम को तैयार होने और अपने-अपने स्तर से कोशिश करने की जरूरत है।
और अब अंत में जेसिका के परिजनों के जज्बे को सलाम जो जिन्होने ऐसी व्यवस्था में हिम्मत नहीं खोई।

घर का भेदी लंका ढाए

-पंकज साव
गत सप्ताह घटित हुई दो बड़ी घटनाओं ने वाकई हमारी आंतरिक और साथ ही साथ बाह्य सुरक्षा-व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। इसमें एक बड़ी घटना है पाकिस्तान में पदस्थापित राजनयिक माधुरी गुप्ता की गिरफ्तारी। माधुरी गुप्ता कितनी दोषी हैं, यह तो अदालत तय करेगी पर इस गिरफ्तारी ने आम भारतीयों की नज़र में जो दुराग्रह पैदा किया है, वह खतरनाक है। देश का हर नागरिक चाहे लाख बुरा हो, सुरक्षा के मामले में एक हो जाता है। अब जब हमारे उच्चायोगों में बैठे विदेश-सेवा के अधिकारियों की ऐसी दागदार छवि बनेगी तो इसका सीधा असर आम आदमी की राष्ट्रीय निष्ठा पर पड़ेगा।
इसका एक बुरा असर भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि और साख पर भी पड़ेगा। हम लाख अपनी देशभक्ति की डींगें हाँक लें। ऐसी एक घटना सारे किए कराए पर पानी फेर देगी। अब हम किस मुँह से दुश्मन देशों पर आरोप लगाएंगे जब अपने ही रखवालों का दामन ही दागदार हो गया। चाहे पाकिस्तान में लोग भूखों मरें पर वह द्वेष में इतना पागल है कि भारत के विरुद्ध साम, दाम, दण्ड, भेद सब उपायों का इस्तेमाल करने से बाज नहीं आने वाला। हमारी विदेश-सेवा तक उसकी पहूँच उसकी भेद की नीति का ही परिणाम है। एक दूसरी बड़ी घटना है उत्तर प्रदेश में नक्सलियों को हथियार सप्लाई करने वाले रैकेट का खुलासा। यहाँ भी हमारे रक्षक ही भक्षक की भूमिका में हैं। इस मामले में पकड़े गए सारे अभियुक्त सीआरपीफ और पुलीस के जवान निकले। हो न हो पिछले दिनों दंतेवाड़ा में मारे गए जवानों पर चलने वाले हथियार उसी सीआरपीएफ के कुछ गद्दार जवानों की सप्लाई की हुई हो।
कुल मिलाकर स्थिति बड़ी ही विकट है। ऐसे अपराध कहीं से क्षम्य नहीं हैं। माधुरी गुप्ता जिस तरह झूठी दलीलें दे रही हैं, उनमें दम नहीं है। कोई व्यक्ति सिर्फ इसलिए खुफिया सूचनाएँ लीक कर दे कि उसका बॉस उसका प्रमोशन नहीं दे रहा है, सही नहीं है। इधर अगर दोंषी जवानों के मामले में भी ढील दी गई तो ऐसे लोगों का मनोबल ही बढेगा। दोनों ही प्रकरणों की गंभीरता को देखते हुए सटीक जाँच कर जल्द से जल्द दोषियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि इस तरह के अपराध आम घटना का रूप न ले सके।




इसका एक बुरा असर भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि और साख पर भी पड़ेगा। हम लाख अपनी देशभक्ति की डींगें हाँक लें। ऐसी एक घटना सारे किए कराए पर पानी फेर देगी। अब हम किस मुँह से दुश्मन देशों पर आरोप लगाएंगे जब अपने ही रखवालों का दामन ही दागदार हो गया। चाहे पाकिस्तान में लोग भूखों मरें पर वह द्वेष में इतना पागल है कि भारत के विरुद्ध साम, दाम, दण्ड, भेद सब उपायों का इस्तेमाल करने से बाज नहीं आने वाला। हमारी विदेश-सेवा तक उसकी पहूँच उसकी भेद की नीति का ही परिणाम है। एक दूसरी बड़ी घटना है उत्तर प्रदेश में नक्सलियों को हथियार सप्लाई करने वाले रैकेट का खुलासा। यहाँ भी हमारे रक्षक ही भक्षक की भूमिका में हैं। इस मामले में पकड़े गए सारे अभियुक्त सीआरपीफ और पुलीस के जवान निकले। हो न हो पिछले दिनों दंतेवाड़ा में मारे गए जवानों पर चलने वाले हथियार उसी सीआरपीएफ के कुछ गद्दार जवानों की सप्लाई की हुई हो।
कुल मिलाकर स्थिति बड़ी ही विकट है। ऐसे अपराध कहीं से क्षम्य नहीं हैं। माधुरी गुप्ता जिस तरह झूठी दलीलें दे रही हैं, उनमें दम नहीं है। कोई व्यक्ति सिर्फ इसलिए खुफिया सूचनाएँ लीक कर दे कि उसका बॉस उसका प्रमोशन नहीं दे रहा है, सही नहीं है। इधर अगर दोंषी जवानों के मामले में भी ढील दी गई तो ऐसे लोगों का मनोबल ही बढेगा। दोनों ही प्रकरणों की गंभीरता को देखते हुए सटीक जाँच कर जल्द से जल्द दोषियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि इस तरह के अपराध आम घटना का रूप न ले सके।

सोमवार, 12 अप्रैल 2010

लिखना शुरू करें

             कौन कहता है कि आसमाँ में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो। हममें से ज्यादातर लोग लिखना तो चाहते हैं पर लिखते नहीं। हम सिर्फ इस डर से लिखना शुरू नहीं करते कि शायद अच्छा नहीं लिख सकेंगे। मजे की बात ये है कि हम साथ ही साथ ये सपना भी देख रहे होते हैं कि भविष्य में अच्छा लिखेंगे। बिना अभ्यास के ही हमें एक चमत्कार का इंतज़ार होता है कि हमारा पहला लेख ही सबसे बेहतर लेख होगा। परन्तु सच तो ये है कि जब कोई लिखेगा ही नहीं तो उसकी लेखन-कला में क्या खाक निखार होगा। क्या कोई जन्मजात लेखक होता है या कोई जादू की छड़ी है जो हमें एक ही बार में लिखना सिखा दे। बिना अभ्यास के कुछ नहीं सुधरता। फिर तो लिखना भी एक कला है, इसे सीखा भी निरंतर अभ्यास से ही जा सकता है। इसमें सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।

प्रख्यात चित्रकार और मूर्तिकार देवीलाल पाटीदार का मानना है कि ज्यादातर लोग इस मुगालते में जीते हैं कि आज की शाम वो ऐसी कविता, कहानी या निबंध लिखेंगे कि दुनिया अचंभित हो जाएगी। ऐसे लोग कला को एक ही तैयारी में किसी विशेष आयोजन की तरह समझते हैं और दुविधा में कुछ शुरु नहीं करते, टालते चले जाते हैं। बकौल पाटीदार यह प्रवृति ठीक वैसे ही है जैसे कोई व्यक्ति ये सोचकर बच्चे पैदा करे कि होने वाली बच्ची विश्व-सुंदरी होगी। वास्तविकता यह है कि कई प्रतिभागियों में से एक को विश्व- सुंदरी का खिताब मिलता है, इसी तरह हजारों- लाखों रचनाओं में कोई पुरस्कृत हो जाता है। सर्वश्रेष्ठ का सपना देखते हुए अकर्मण्य बने रहना कहाँ की बुद्धिमानी है।

हमें प्रकृति के इस नियम को समझना होगा कि सर्वश्रेष्ठ एक ही होता है पर बाकी सभी ख़राब नहीं होते। हमारे सोचने मात्र से कुछ अच्छा या बुरा नहीं हो जाता। हम मुगालते में जीकर पछतावा के अलावा कुछ हासिल नहीं करते। इसलिए हमें लिखने का काम लगातर करते रहना चाहिए। परिश्रम के अलावा कोई रास्ता नहीं। बिना अभ्यास के हम अच्छा नहीं लिख सकते। हम याद करें अपने बचपन को जब एक-एक चीज़ को काफी जद्दोजहद के बाद हम सीख पाते हैं। चलना, उठना, खाना, पीना सब के लिए लगातार उर्जा लगानी पड़ती है। वर्ण एवं मात्राएं सीखने के लिए कितना प्रयास करना पड़ता है, किसी से छिपा नहीं है।

हमारे मन-मष्तिष्क में नए-नए विचार आते रहते हैं। प्राय: हम इन्हें व्यक्त नहीं कर पाते। कई बातें हमारे मन को झकझोरती रहती हैं पर उसे मुँह से बोलकर बताना अच्छा नहीं जान पड़ता। स्थिति कई बार तो अवसाद का रूप ले लेती है। इसलिए कही जाने लायक बातों का बोझ मन से निकालने का जरिया भी है कलम और काग़ज़। लिखी हुई बातें ज्यादा टिकाऊ और प्रभावी होती हैं। विशेषज्ञों का यह मानना है कि लिखने से मानसिक दबाव भी कम होता है। लिखी बातें भविष्य के लिए सुरक्षित भी रखी जा सकती हैं।



लिखने की कला का महत्व और भी बढ़ जाता है जब हम पत्रकारिता से जुड़े हों। लिखने के बदौलत ही तो पत्रकारों की रोटी का जुगाड़ होता है। अगर हमनें समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया तो पछतावे की कोई बात नहीं। जब जागो तभी सबेरा।
मगर हाँ हम अगर अब भी नहीं चेते तो आगे का समय मश्किल भऱा हो सकता है। हो सकता है शुरुआत में बेहतर लिख पाएँ पर निरंतर अभ्यास से सब ठीक हो जाएगा। किसी ने ठीक ही कहा हैः

करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत-जात ते सिल पर परत निशान।।



शुक्रवार, 12 मार्च 2010

वोट कहीं न जाए

महिला आरक्षण के विरोध में खड़े लालू-मुलायम की चिंता कहाँ हैं,सभी जानते हैं। देश जाए,समाज जाए पर वोट कहीं न जाए,शायद यही मंत्र है इनका। सालों तक बिहार में जंगलराज चलाने वाले लालू को आज पिछड़े वर्ग के महिलाओं की याद आ रही है। मुलायम जब यूपी के सीएम थे, कुछ कर नहीं पाए। आज जब कांग्रेस ने युगों से शोषित महिलाओं को आरक्षण देने की कोशिश की तो अनर्गल विरोध करना शुरु कर दिया। यहाँ तक कि समर्थन की वापसी की घोषणा भी कर दी। राज्यसभा में बिल के पास होने के बाद जिस तरह के स्वर अन्य दलों के नेताओं के बीच उठ रहे हैं, उससे यह भी स्पष्ट होता जा रहा है कि बिल की समर्थक पार्टियों के नेता भी आपस में एकमत नहीं हैं। एक सवाल जो उभर कर आया है,वह यह है कि 1996 से इस विधेयक पर किसी का ध्यान क्यों नहीं गया. इसे भी कांग्रेस की सोची-समझी वोट की राजनीति का हिस्सा माना जा रहा है। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि पार्टयां वही करेंगी जो करेंगी जो वोट के लिहाज से ठीक होगा।