शनिवार, 18 मई 2013

कर्मचारियों का अस्पताल या मस्ती की पाठशाला

डॉक्टर साहब ने एक्सरे करवाकर दोपहर ढाई बजे तक दुबारा मिलने को कहा और लंच करने की बात कह निकल गए। दर्द से परेशान मरीज एक्सरे करवाने के बाद धरती के भगवानके आदेशानुसार ढाई बजे से पहले ही डॉक्टर के चैंबर के बाहर लगी कुर्सियों पर बैठ इंतजार करने लगा।

4 बज गए, डॉक्टर साहब नहीं आए। मरीज को वापस घर भी जाना था। अस्पताल से 133 किलोमीटर दूर। उसने थक हार कर डॉक्टर की खोजबीन शुरू कर दी। किसी ने बताया, आकस्मिक कक्ष में होंगे। जाकर देखा तो दो-तीन कराहते मरीजों के अलावा वहां कोई नहीं था। ढूंढते-ढूंढते एक दूसरे कमरे में पहुंचा तो वहां कुछ और ही माजरा था। वहां कई डॉक्टर हंसी-ठिठोली में मग्न थे। मरीज ने पूछा- हड्डी वाले डॉक्टर कौन है। उन्होंने मुझे घंटों से बाहर बिठा रखा है। लंच के बाद अब तक नहीं आए। इतना सुनते ही वहां से एक महानुभाव सरक लिए। पीछे से दूसरे ने मरीज की ओर इशारा किया, वही तो हैं!  मरीज डॉक्टर के पीछे दौड़ा। चैंबर में पहुंचा तो थोड़ी ही देर में दवाओं की एक पर्ची और गोल-मोल निर्देशों की पोटली देकर उसे छुट्टी दे दी गई।

उक्त मरीज को करीब दो महीने पहले भी उसी डॉक्टर ने बिना देखे-समझे ही दवाओं की पर्ची थमाकर टरका दिया था। अब दूसरी बार परेशान होने के बाद उसने अपने बेटे ( जो एक प्राइवेट कंपनी में काम करता है) से साफ कह दिया है, भाड़ में जाए तेरा कर्मचारी अस्पताल!

किसी आम सरकारी अस्पताल में तो ऐसी घटनाएं आम बात हैं पर यह हाल रांची के नामकुम स्थित कर्मचारी राज्य बीमा निगम (इएसआईसी) के मॉडल अस्पताल का है। विदित हो कि कर्मचारी राज्‍य बीमा, भारतीय कर्मचारियों के लिये चलायी गयी स्व-वित्तपोषित सामाजिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य बीमा योजना है। सभी स्थायी कर्मचारी जो 15,000 रूपये प्रतिमाह से कम वेतन पाते हैं,  इसके पात्र हैं। इसके नाम पर कर्मचारी के वेतन से प्रतिमाह 1.75 प्रतिशत की कटौती की जाती है 4.75 प्रतिशत योगदान रोजगार प्रदाता का होता है।

सरकारी अस्पतालों की बदनामी के बीच अत्यंत कम वेतन पर गुजारा करने वाले कर्मचारियों के लिए ईएसआईसी आशा की किरण है। पर वेतन भोगी डॉक्टर तो इसे सरकारी अस्पताल से भी बदतर बनाने पर तुले जान पड़ते हैं। झारखंड सरकार ने हाल ही में चिकित्सा सुरक्षा अधिनियम ( मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट)- 2013 को मंजूरी दी है। अब यदि कोई व्यक्ति नर्सिग होम, अस्पताल या चिकित्सक पर हमला करता है तो इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत उसे तीन साल की कैद और 50,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। डॉक्टरों की लापरवाही और कई बार मरीजों के परिजनों की गलतफहमियों के कारण हमले की कई ऐसी घटनाएं होती रही हैं पर सवाल ये है कि डॉक्टरों की सुरक्षा की व्यवस्था सरकार ने तो कर दी लेकिन गरीब मरीजों का क्या होगा?