सोमवार, 19 मार्च 2012

'गुलाब' की 'ममता': कल और आज


        मित्रों, आज मै कुछ अपनी तरफ से नहीं कह रहा, बल्कि एक प्रतिष्ठित संपादक की एक ही नेता के सम्बन्ध में 6 महीने के अन्दर में लिखी गई दो विरोधाभासी  टिप्पणी साझा कर रहा हूँ. बाकी आप पर छोड़ता हूँ. 

         तो पहले 13 अक्तूबर, 2011  को लिखी गई टिप्पणी का एक अंश-
ममता दी की बात में कहीं अहंकार नहीं था। बंगाल के विकास के प्रति एक भावपूर्ण अपेक्षा का भाव भी था और स्नेह भी। उन्होने अपना मोबाइल नम्बर देते हुए एक चुटकी मीडिया के नाम जरूर काटी। ‘किसी को देना मत। लोग अभद्र संदेश भी देते हैं।’ आपको मिलने में कभी दिक्कत नहीं होगी। हमें राजस्थान से निवेश चाहिए। इसमें आपका सहयोग चाहिए। हर बार की तरह इस बार भी द्वार तक छोड़ने आई। सरस्वती लक्ष्मी में रूपान्तरित होना चाह रही थी।

         और अब 16 मार्च, 2012 को लिखी गई टिप्पणी का एक अंश-
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी अपनी राजनीतिक पैंतरेबाजी एवं अघिनायकवादी वक्तव्यों के पर्याय के रूप में जानी जाती हैं। सत्ता का मद, त्रियाहठ तथा राजनीतिक अकेलेपन की झुंझलाहट उन्हें अशान्त ही किए रहते हैं।

आप पूरा लेख पढ़ सकें इसलिए  दोनों के लिंक भी-

http://gulabkothari.wordpress.com/2011/10/13/%E0%A4%A8%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8/

http://gulabkothari.wordpress.com/2012/03/16/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BE/