मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

ज्ञानार्जन भारत की परंपराः आरिफ मोहम्मद खान

       भारतीय संस्कृति में पत्रकारिता के मूल्य विषय पर राष्ट्रीय संविमर्श
 भोपाल 22 फरवरी। पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान का कहना है कि भारत की परंपरा, ज्ञान की परंपरा है, प्रज्ञा की परंपरा है। भारतीय संस्कृति का सारा जोर ज्ञानार्जन पर है। वे यहां भारतीय संस्कृति में पत्रकारिता के मूल्य विषय पर माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता  एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संविमर्श में मुख्य वक्ता की आसंदी से बोल रहे थे।
    उन्होंने कहा कि प्राचीनकाल से ही भारत में ज्ञान का संचय होता रहा है और यहां  ज्ञान से ही लक्ष्मी को प्राप्त किया जाता है। परंतु आज हम लक्ष्मी को सर्वोपरि मानकर अज्ञानता को थोप रहे हैं। उन्होंने कहा की आज भारतीय मीडिया में महाभारत के संजय जैसे पत्रकारों की भारी जरूरत है ,जो बिना किसी लगाव व अलगाव के निष्पक्षता पूर्वक अपने काम को अंजाम दे सकें। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता की पहली कसौटी निष्पक्षता है किंतु वह अपने इस धर्म से विचलित हुयी है। श्री खान ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज पेड न्यूज जैसी विकृति भारतीय मीडिया में पश्चिम से नहीं बल्कि स्वतः आई है, हमें ऐसी विकृतियों के समाधान भी अपनी सांस्कृतिक परंपराओं में ही तलाशने होंगें। उनका कहना था कि कोई भी पत्रकारिता शून्य में नहीं हो सकती। उसे देश की समस्याओं आतंकवाद, माओवादी आतंकवाद, गरीबी, अशिक्षा और विकास के सवालों को संबोधित ही करना पड़ेगा। तभी वह प्रासंगिक हो सकती है और उसे जनता का आदर प्राप्त हो सकता है। उन्होंने कहा कि शिक्षा के माध्यम से ही किसी भी दुर्बल वर्ग का को शक्तिशाली बनाया जा सकता है। क्योंकि शिक्षा ही एक मात्र ऐसा विषय है जिस पर कोई विवाद नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति विविधताओं का आदर करने वाली है। राष्ट्रीय संविमर्श के मुख्य अतिथि मध्य प्रदेश शासन के उच्च शिक्षा एवं जनसंपर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने अपने उदबोधन में कहा कि आज मीडिया द्वारा किसी नकारात्मक समाचार को बार-बार दिखाना काफी खेदजनक है। मीडिया को इससे बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि हालांकि आज के लोग बहुत जागरूक हैं इसलिए चिंता करने की जरूरत नहीं है। किंतु सकारात्मक चिंतन से समाज को शक्ति मिलती है और उसे हर संकट के समाधान का संबल भी मिलता है। उन्होंने कहा भारतीय संस्कृति ने सभी संस्कृतियों के श्रेष्ठ गुणों को आत्मसात किया है और सबको स्वीकार किया है। हमारी संस्कृति कुछ थोपने की संस्कृति नहीं है, वरन श्रेष्ठता का आदर करने वाली संस्कृति है। उन्होंने मीडिया के विद्यार्थियों का आह्ववान किया वे समाज जीवन में सकारात्मक मूल्यों की स्थापना करते हुए सुसंवाद का वातावरण बनाने में सहयोगी बनें। श्री शर्मा ने कहा कि अगर नई पीढ़ी बेहतर करेगी तो आने वाले समय में समाज जीवन में एक जीवंत वातावरण बनेगा तथा भारत को महाशक्ति बनने से कोई रोक नहीं सकता। संविमर्श की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला  ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि मीडिया के आधारभूत तत्वों में कहीं न कहीं कमी दिखती है। पूरी दुनिया में स्थापित व्यवस्थाओं में परिर्वतन और विकल्पों की तलाश हो रही है। मीडिया का वैकल्पिक माडल खड़ा करने और उसके विकल्प प्रस्तुत करने के लिए हमें तत्पर रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज यह सोचने का समय है कि एक पत्रकार कैसा होना चाहिए और मीडिया का भावी स्वरूप क्या हो। शुभारंभ सत्र का संचालन प्रो. आशीष जोशी ने किया। 
             द्वितीय सत्रः भारतीय संस्कृति एक परिचय
   सेमीनार का दूसरा सत्र भारतीय संस्कृति पर केंद्रित था। इस सत्र में अपने विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा ने कहा कि बाजार का सबसे तेज हमला इस समय हमारी संस्कृति पर है। यह हमला विचारों की शक्ल में भी है और उत्पादों की शक्ल में भी। दुनिया के विकास की सारी धाराएं भारत से प्रेरित हैं इसलिए दुनिया भारत की इस शक्ति से घबराती है। इसलिए सारे विदेशी विचारों का हमला हम पर है।
   सत्र के मुख्य वक्ता धर्मपाल शोधपीठ के निदेशक प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज ने कहा कि भारतीय संस्कृति का सार सनातन धर्म है और सनातन धर्म का सार वीरता व शौर्य है। यदि वीरता और शौर्य नही होगा तो सारे गुणों के साथ संस्कृति और व्यक्ति दोनों नष्ट हो जाएंगें। उन्होंने मीडिया के विषय में कहा कि मीडिया को यह भ्रम खत्म कर लेना चाहिए की देश मीडिया के सहारे चल रहा है।सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रो. डॉ. नंद किशोर त्रिखा ने कहा कि आज हमें अपनी संस्कृति पर शर्मिदगी उठाने की जरूरत नहीं है बल्कि गौरवान्वित महसूस करने की आवश्यकता है क्योंकि हमारी संस्कृति उच्च और आदर्श विचारों पर आधारित है। इस सत्र का संचालन डा. श्रीकांत सिंह ने किया।
                 तृतीय सत्रः भारतीय संस्कृति के मौलिक मूल्य
संविमर्श के तृतीय सत्र भारतीय संस्कृति के मौलिक मूल्य में बतौर मुख्य वक्ता पूर्व केंद्रीय वाणिज्य मंत्री आरिफ बेग ने कहा कि हमारा एक ही  उद्देश्य होना चाहिए कि भारत को पुनः विश्व गुरू के रूप में स्थापित करना है। यह तभी संभव है कि जब हम पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण ना करें । अपनी संस्कृति के अनुरूप अपनी शैली से देश व समाज के विकास में आगे आएं। उन्होने कहा आज हमें यह सुनिश्चत करना होगा कि हम अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्यों को पूर्ण निष्ठा व ईमानदारीपूर्वक निभाएं तभी हम दूसरों से ईमानदारी की उम्मीद कर सकते हैं। अपने हक की रोटी खाएं और मस्त रहे बुराईयां खुद व खुद खत्म हो जाएगी।सत्र के मुख्यवक्ता राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के अध्यक्ष कैलाश चंद्र पंत ने कहा आज की युवा पीढ़ी एक तरफ तो पश्चिम के भौतिक मूल्यों से आक्रांत है वही अपनी संस्कृति के विचलन से परेशान है। आज का संकट विचार का स्खलन और वैचारिक शून्यता का संकट है। पत्रकारिता में पेड न्यूज जैसी संस्कृति पनप रही है जो हमारे मूल्यों पर आघात कर रही है। उन्होंने कहा कि एनी बेसेंट और श्री माँ  की तरह ही भारतीय संस्कृति को भारतीय रंग में  ही रंग कर समझा जा सकता है। श्री पंत ने पत्रकारिता के विद्यार्थियों से आह्लवान किया कि वे अपनी जड़ों की ओर लौटें। इस सत्र का संचालन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया।
       चतुर्थ सत्रः सामाजिक संवाद में करने और न करने योग्य कार्य
   संविमर्श के चतुर्थ सत्र सामाजिक संवाद में करने और न करने योग्य कार्य विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए मुख्यवक्ता पांचजन्य के संपादक बलदेवभाई शर्मा ने कहा कि पत्रकार का जीवन हमें एक अवसर प्रदान करता है कि जिसमें हम दूसरों के लिए कुछ कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि आज समाज में मीडिया को अविश्वास की नजरों से देखा जा रहा है। इस वातावरण को बदलने की जरूरत है। सत्र के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार देवेंद्र दीपक ने कहा कि हमारी दिशा पवित्रता की ओर होनी चाहिए। यही पवित्रता समाज जीवन के हर क्षेत्र में स्थापित करने का यत्न करना चाहिए। सत्र का संचालन राघवेंद्र सिंह ने किया।

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